माखन का स्वाद
मैया री मोहिं माखन भावै
मधु मेवा पकवान मिठाई, मोहिं नहीं रूचि आवै
ब्रज-जुबती इक पाछे ठाढ़ी, सुनति श्याम की बातैं
मन मन कहति कबहुँ अपने घर, देखौं माखन खातैं
बैठे जाय मथनियाँ के ढिंग, मैं तब रहौं छिपानी
‘सूरदास’ प्रभु अंतरजामी, ग्वालिन मन की जानी