समर्पण
मैं तो गिरिधर आगे नाचूँगी
नाच नाच मैं पिय को रिझाऊँ, प्रेमी जन को जाचूँगी
प्रेम प्रीति के बाँध घुँघरूँ, सुरति की कछनी काछूँगी
लोक लाज कुल की मर्यादा, या मैं एक न राखूँगी
पिया के चरणा जाय पडूँगी, ‘मीराँ’ हरि रँग राचूँगी
समर्पण
मैं तो गिरिधर आगे नाचूँगी
नाच नाच मैं पिय को रिझाऊँ, प्रेमी जन को जाचूँगी
प्रेम प्रीति के बाँध घुँघरूँ, सुरति की कछनी काछूँगी
लोक लाज कुल की मर्यादा, या मैं एक न राखूँगी
पिया के चरणा जाय पडूँगी, ‘मीराँ’ हरि रँग राचूँगी