पाप कर्म
मैं कासे कहूँ कोई माने नहीं
बिन हरि नाम जनम है विरथा, शास्त्र पुराण कही
पशु को मार यज्ञ में होमे, निज स्वारथ सब ही
इक दिन आय अचानक तुमसे, ले बदला ये ही
पाप कर्म कर सुख को चाहे, ये कैसे निबहीं
कहे ‘कबीर’ कहूँ मैं जो कछु, मानो ठीक वही
पाप कर्म
मैं कासे कहूँ कोई माने नहीं
बिन हरि नाम जनम है विरथा, शास्त्र पुराण कही
पशु को मार यज्ञ में होमे, निज स्वारथ सब ही
इक दिन आय अचानक तुमसे, ले बदला ये ही
पाप कर्म कर सुख को चाहे, ये कैसे निबहीं
कहे ‘कबीर’ कहूँ मैं जो कछु, मानो ठीक वही