प्रतीक्षा
मैं हारी, मैं हारी, मैं हारी ओ गिरिधारी
आप बिसारे, पर ना हारी, पंथ निहारे हारी
मैं हारी….
पतझर बीता डाल डाल पर नये पात फिर छाये,
पर ना दुखिया मन में मेरे, फिरे भाग फिर आये
सुख के दिन क्या बीत चले, मैं आशा धारे हारी
मैं हारी…
आँचल भींग गये आँसू से, जी की जलन न जाये
अहो मीत राधा के मन के,मुझको क्यों बिसराये
कुंज-कुंज भटकी पचि हारी, पिया पुकारे हारी
मैं हारी…
वर्षा इन नयनों में उमड़े, पतझर छाया मन में,
साँसों में आशा की आहें, जैसे जेठ-पवन में
नींद कहाँ! मोहन-आहट में, नैन उघाड़े हारी
मैं हारी…

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