मुरली का जादू
माधुरी मुरली अधर धरैं
बैठे मदनगुपाल मनोहर सुंदर कदँब तरैं
इत उत अमित ब्रजबधू ठाढ़ी, विविध विनोद करैं
गाय मयूर मधुप रस माते नहीं समाधि टरैं
झाँकी अति बाँकी ब्रजसुत की, कलुष कलेश हरैं
बसत नयन मन नित्य निरंतर, नव नव रति संचरैं
मुरली का जादू
माधुरी मुरली अधर धरैं
बैठे मदनगुपाल मनोहर सुंदर कदँब तरैं
इत उत अमित ब्रजबधू ठाढ़ी, विविध विनोद करैं
गाय मयूर मधुप रस माते नहीं समाधि टरैं
झाँकी अति बाँकी ब्रजसुत की, कलुष कलेश हरैं
बसत नयन मन नित्य निरंतर, नव नव रति संचरैं