होली
लाल गुलाल गुपाल हमारी, आँखिन में जिन डारोजू
वदन चंद्रमा नैन चकोरी, इन अन्तर जिन पारोजू
गाओ राग बसंत परस्पर, अटपट खेल निवारोजू
कुंकुम रंग सों भरि पिचकारी, तकि नैनन जिन मारोजू
बाँकी चितवन नेह हृदय भरि, प्रेम की दृष्टि निहारोजू
नागरि-नागर भवसागर ते, ‘कृष्णदास’ को तारोजू