भरत-केवट मिलाप
कोई मनुष्य है नीच नहीं, भगवान भक्त हो, बड़ा वही
श्री भरत मिले केवट से तो, दोनों को ही आनन्द हुआ
मालूम हुआ केवट से ही, राघव का उससे प्रेम हुआ
तब भरत राम के जैसे ही, छाती से उसको लगा रहे
केवट को इतना हर्ष हुआ, आँखों से उसके अश्रु बहे
जाति से यद्यपि तुच्छ रहा, राघव को प्राणों सा प्यारा
फूलों की वर्षा करे देव, प्रेमानुराग सबसे न्यारा