यशोदा की चिन्ता
खेलन कौं हरि दूरि गयौ री
संग-संग धावत डोलत हैं, कह धौं बहुत अबेर भयौ री
पलक ओट भावत नहिं मोकौं, कहा कहौं तोहि बात
नंदहिं तात-तात कहि बोलत, मोहि कहत है मात
इतनो कहत स्याम-घन आये, ग्वाल सखा सब चीन्हे
दौरि जाइ उर लाइ ‘सूर’ प्रभु, हरषि जसोदा लीन्हे