नरसिंह रूप
खम्भ फाड़के प्रगटे नरहरि, अपनों भक्त उबार्यो
दैत्यराज हिरणाकशिपु को, नखते उदर विदार्यो
नरसिंहरूप धर्यो श्रीहरि ने, धरणी भार उतार्यो
जय-जयकार भयो पृथ्वी पे, सुर नर सबहिं निहार्यो
कमला निकट न आवे, ऐसो रूप कबहुँ नहीं धार्यो
चूमत अरु चाटत प्रह्लाद को, तुरत ही क्रोध निवार्यो
राजतिलक दे दियो प्रभु ने, हस्त कमल सिर धार्यो
‘नंददास’ स्वामी करुणामय, भक्त ताप निस्तार्यो