दुर्गादेवी स्तुति
करुणामयी हे भगवती! सद्बुद्धि दें, संकट हरें
आरूढ़ होती सिंह पर, शुभ मुकुट माथे पर धरें
मरकत मणि सम कान्तिमय, हम जगन्माता को वरें
जिसकी न तुलना हो सके, सौन्दर्य माँ का मोहता
वह गात कंकण, करधनी अरू नूपुरों से गूँजता
माता अधीश्वरी विश्व की, सब देवताओं में प्रमुख
वे अभय करतीं, भोग देतीं और देतीं शांति-सुख
संकट में आये भक्त को माँ विपुल क्षमता दान कर
विजयी बना देतीं उसे फिर, शत्रुओं का शौर्य हर
जगदम्बिके दुर्गे हमारी, दुगर्ति को दूर कर
भगवान् शंकर की प्रिये, माता हमारे विघ्न हर