श्री राधाकृष्ण
कर चिन्तन श्रीकृष्ण का, राधावर का ध्यान
अमृत ही अमृत झरे, करुणा-प्रेम निधान
जप तप संयम दान व्रत, साधन विविध प्रकार
श्रीकृष्ण से प्रेम ही, निगमागम का सार
कृष्ण कृष्ण कहते रहो, अमृत-मूरि अनूप
श्रुति-शास्त्र का मधुर फल, रसमय भक्ति स्वरूप
श्रीराधा की भक्ति में निहित प्यास का रूप
आदि अन्त इसमें नहीं, आनन्द अमित अनूप
पद-सरोज में श्याम के, मन भँवरा तज आन
रहे अभी से कैद हो, अन्त समय नहीं भान
कृष्ण प्रिया श्री राधिके, राधा प्रिय घनश्याम
एक सहारा आपका, बंधा रहा नित काम
युगल माधुरी चित चढ़े, राधा-कृष्ण ललाम
हे करुणाकर वास दो, श्री वृन्दावन धाम
श्री वृन्दावन कुंज में, राधा-कृष्ण ललाम
क्रीड़ा नित नूतन करें, अद्वितीय अभिराम