ब्रज महिमा
कहा कँरू वैकुण्ठ ही जाये
जहाँ नहिं नंद जहाँ न जसोदा, जहाँ न गोपी ग्वाल न गायें
जहाँ न जल जमुना को निर्मल, जहँ नहिं मिले कदंब की छायें
जहाँ न वृन्दावन में मुरली वादन सबका चित्त चुराये
‘परमानंद’ प्रभु चतुर ग्वालिनि, व्रज तज मेरी जाय बलाये