बंसी का जादू
कछु पट पहिनति रही, कछुक आभूषण धारति
कछु दर्पन महँ देखि माँग, सिन्दूर सम्हारति
जो जो कारज करति रही, त्यागो सो तिनने
चलीं बेनु सुनि काज अधुरे छोड़े उनने
बरजी पति पितु बन्धु ने, रोकी बहुत पर नहीं रुकी
कही बहुत पर ते नहीं, लोक लाज सम्मुख झुकी