विरह व्यथा
जोगी मत जा, मत जा, मत जा, पाँव पड़ू मैं तोरे
प्रेम भगति को पंथ है न्यारो, हमकूँ गैल बता जा
अगर चंदन की चिता बनाऊँ, अपने हाथ जला जा
जल-जल भई भस्म की ढेरी, अपने अंग लगा जा
‘मीराँ’ कहे प्रभु गिरिधर नागर, जोत में जोत मिला जा
विरह व्यथा
जोगी मत जा, मत जा, मत जा, पाँव पड़ू मैं तोरे
प्रेम भगति को पंथ है न्यारो, हमकूँ गैल बता जा
अगर चंदन की चिता बनाऊँ, अपने हाथ जला जा
जल-जल भई भस्म की ढेरी, अपने अंग लगा जा
‘मीराँ’ कहे प्रभु गिरिधर नागर, जोत में जोत मिला जा