कामना का त्यचक्ष
जो लौं मन कामना न छूटै
तो कहा जोग जज्ञ व्रत कीन्हैं, बिनु कन तुस को कूटै
कहा असनान किये तीरथ के, राग द्वेष मन लूटै
करनी और कहै कछु औरे, मन दसहूँ दिसी टूटै
काम, क्रोध, मद, लोभ शत्रु हैं, जो इतननि सों छूटै
‘सूरदास’ तब ही तम नासै, ज्ञान – अगिनि झर फूटै