श्री ऋषभदेव
जो जन्मे महाराज नाभि के, पुत्र रूप से
विष्णु ही थे जो कहलाये, ऋषभ नाम से
बड़े हुए तो किया अध्ययन वेदशास्त्र का
सौंपा तब दायित्व पिता ने राजकाज का
सुख देकर सन्तुष्ट किया, भलीभाँति प्रजा को
हुई इन्द्र को ईर्ष्या तो, रोका वर्षा को
ऋषभदेव ने वर्षा कर दी, योग शक्ति से
शची-पति लाज्जित हुए, सुता को व्याहा उनसे
वनवासी हो, अपनाया अवधूत वृत्ति को
रूप मनोहर किन्तु कोई दे गाली उनको
खाने कोई देता कुछ भी खा लेते वे
ईश्वरीय सामर्थ्य छिपाकर रहते थे वे
यद्यपि दिखते पागल जैसे, परमहंस थे
वन्दनीय उनका चरित्र, वे राजर्षि थे