नाशवान संसार
जीवन के दिन चार रे, मन करो पुण्य के काम
पानी का सा बुदबुदा, जो धरा आदमी नाम
कौल किया था, भजन करूँगा, आन बसाया धाम
हाथी छूटा ठाम से रे, लश्कर करी पुकार
दसों द्वार तो बन्द है, निकल गया असवार
जैसा पानी ओस का, वैसा बस संसार
झिलमिल झिलमिल हो रहा, जात न लागे बार
मक्खी बैठी शहद पे, लिये पंख लपटाय
कहे ‘कबीर’ सुनो भाई साधो, लालच बुरी बलाय