माँ की अभिलाषा
जसुमति मन अभिलाष करे
कब मेरो लाल घुटुरूअन रैंगे, कब धरती पग धरै
कब द्वै दाँत दूध के देखौ, कब तोतरे मुख वचन झरै
कब नंद ही बाबा कहि बोले, कब जननी कहि मोहि ररै
‘सूरदास’ यही भाँति मैया , नित ही सोच विचार करै
माँ की अभिलाषा
जसुमति मन अभिलाष करे
कब मेरो लाल घुटुरूअन रैंगे, कब धरती पग धरै
कब द्वै दाँत दूध के देखौ, कब तोतरे मुख वचन झरै
कब नंद ही बाबा कहि बोले, कब जननी कहि मोहि ररै
‘सूरदास’ यही भाँति मैया , नित ही सोच विचार करै