पालना
जसोदा हरि पालना झुलावै
मेरे लाल की आउ निंदरिया, काहे न आन सुवावै
तूँ काहैं नहि बेगिहि आवै, तोको कान्ह बुलावै
कबहुँ पलक हरि मूँदि लेत हैं, कबहुँ अधर फरकावै
सौवत जानि मौन ह्वैके रहि, करि करि सैन बतावै
जो सुख ‘सूर’ देव मुनि दुरलभ, सो नँद भामिनि पावें