होली
जमुनातट क्रीड़त नँदनंदन, होरी परम सुहाई
युवती-यूथ संग ले राधा, सन्मुख खेलन आई
रत्नजटित पिचकारी भरि के, सखी एक ले धाई
प्राणप्रिया मुख निरख स्याम को, छिरकत मृदु मुसकाई
तब ही गुलाल भरी मुट्ठी में, पिय की ओर चलाई
मानों उमगि प्रीति अतिशय हो, बाहिर देत दिखाई
दौरि अचानक कुँवरि राधिका, गहे स्याम सुखदाई
प्रेम गाँठ में मन अरुझानो, सुरझत नहिं सुरझाई
ब्रजबनिता सब गारी गावैं, मीठे वचन सुनाई
सुर विमान चढ़ि कौतुक भूले, जय जय गोकुलराई