सदुपदेश
जगत में जीवन है दिन चार
खरी कमाई से ही भोगो, किंचित सुख संसार
मात-पिता गुरुजन की सेवा, कीजै पर उपकार
पशु पक्षी जड़ सब के भीतर, ईश्वर अंश निहार
द्वेष भाव मन से बिसराओ, करो प्रेम व्यवहार
‘ब्रह्मानंद’ तोड़ भव-बंधन, यह संसार असार

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