प्रभाती
जागहु ब्रजराज लाल मोर मुकुट वारे
पक्षी गण करहि शोर, अरुण वरुण भानु भोर
नवल कमल फूल, रहे भौंरा गुंजारे
भक्तन के सुने बैन, जागे करुणा अयन
पूजि के मन कामधेनु, पृथ्वी पगु धारे
करके फिर स्नान ध्यान, पूजन पूरण विधान
बिप्रन को दियो दान, नंद के दुलारे
करके भोजन गुपाल गैयन सँग भये ग्वाल
बंशीवट तीर गये, भानुजा किनारे
मुरलीधर लकुटि हाथ, विहरत गोपिन के साथ
नटवर को वेष कियो, यशुमति के प्यारे
आई में शरण नाथ, बिनवति धरि चरण माथ
‘रूपकुँवरि’ दरस हेतु द्वार पे तिहारे