मुरली मोहिनी
जब जब मुरली कान्ह बजावत
तब तब राधा नाम उचारत, बारम्बार रिझावत
तुम रमनी, वे रमन तुम्हारे, वैसेहिं मोहि जनावत
मुरली भई सौति जो माई, तेरी टहल करावत
वह दासी, तुम्ह हरि अरधांगिनि, यह मेरे मन आवत
‘सूर’ प्रगट ताही सौं कहि कहि, तुम कौं श्याम बुलावत