अनुराग
गोपियाँ ढूँढ रही मोहन को
हम भटक रही है वन में, प्रिय दर्शन दे दो हमको
वह प्रेम भरा आलिंगन, मनमोहक प्यारी चितवन
तो लगीं गर्व हम करने, त्रुटि हमसे हुई बिहारी
हे पीपल, आम, चमेली! चितचोर कहाँ क्या देखा!
तुम हमको मार्ग बता दो,हम दुःखी हैं ब्रजनारी
तब चरणचिन्ह गोविन्द के, वें देख बढ़ी फिर आगे
छलिया मोहन के सँग में, लगता है राधा प्यारी
वो बैठ गई थक कर के, जब प्रियतम के कंधे पर
अदृश्य हुए नटनागर, सो विलख रही सुकुमारी
अचेत हो गई राधा, सखियों ने उन्हें जगाया
सब फूट फूट कर रोयें, तो प्रकट हुए बनवारी

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