शरणागति
घनश्याम मुझे अपना लेओ, मैं शरण तुम्हारे आन पड़ी
मैंने मात, पिता घर बार तजे, तो लोग कहें मैं तो बिगड़ी
अब छोड़ सभी दुनियादारी, मैं आस लगा तेरे द्वार खड़ी
यौवन के दिन सब बीत गये, नहिं चैन मुझे अब एक घड़ी
हे प्राणेश्वर, हे मुरलीधर, मुझको है तुमसे आस बड़ी
वह नयन मनोहारी चितवन, मेरे उर के बीच में आन अड़ी