श्याम रंग
गयो मन श्याम संग ही भाग
मुरली की धुन पड़ी कान में, मन उमग्यो अनुराग
अधर-सुधा-रस भरी सुनाई, दिव्य मधुरतम राग
मधुर मिलन की गोपीजन मन, उठी कामना जाग
कैसा प्रबल प्रेम है इनका, जग से हुआ विराग
दर्शन जिसको मिले श्याम का, उसका ही बड़भाग
श्रुतियाँ ढूँढ रहीं हैं जिनको, पाये न उनकी थाह
यही ब्रह्म मुरलीधर बनके, लीला करते वाह