भक्त के भगवान
दीनन दुख हरन देव संतन हितकारी
ध्रुव को हरि राज देत, प्रह्लाद को उबार लेत
भगत हेतु बाँध्यो सेतु, लंकपुरी जारी
तंदुल से रीझ जात, साग पात आप खात
शबरी के खाये फल, खाटे मीठे खारी
गज को जब ग्राह ग्रस्यो, दुःशासन चीर खस्यो
सभा बीच कृष्ण कृष्ण, द्रौपदी पुकारी
इतने हरि आय गये, वसनन आरूढ़ भये
‘सूरदास’ द्वारे ठाढ़ो, आँधरो भिखारी
ADBHUT
That’s right!