अन्तर्धान लीला
धुरि धूसरित नील कुटिल कच, कारे कारे
मुखपै बिथुरे मधुर लगें, मनकूँ अति प्यारे
झोटा खात बुलाक, मोर को मुकुट मनोहर
ऐसो वेष बनाइ जाउ जब, बन तुम गिरिधर
तब पल-पल युग-युग सरिस, बीतत बिनु देखे तुम्हें
अब निशिमहँ बन छाँड़ि तुम, छिपे छबीले छलि हमें