निर्वेद
धरती माता यह समझाये
जिसको तू अपना है कहता, कुछ भी साथ न जाए
मुझको पाने को ही प्यारे तुम, आपस में क्यों लड़ते
खोया विवेक जो मिला प्रभु से मिल जुल क्यों नहीं रहते
जो महाराजा सम्राट समझते, पृथ्वीपति अपने को
हुए मृत्यु के ग्रास अन्त में, अहंकार था जिनको
खोद-खोद मुझको जिसने भी, डाला अपना डेरा
यही छोड़कर जाना सबको, मूर्ख कहे घर मेरा