श्याम स्वरुप
देखे हम हरि नंगम्नंगा
आभूषण नहिं अंग बिराजत, बसन नहीं, छबि उठत तरंगा
अंग अंग प्रति रूप माधुरी, निरखत लज्जित कोटि अनंगा
किलकत दसन दधि मुख लेपन, ‘सूर’ हँसत ब्रज जुवतिन संगा
श्याम स्वरुप
देखे हम हरि नंगम्नंगा
आभूषण नहिं अंग बिराजत, बसन नहीं, छबि उठत तरंगा
अंग अंग प्रति रूप माधुरी, निरखत लज्जित कोटि अनंगा
किलकत दसन दधि मुख लेपन, ‘सूर’ हँसत ब्रज जुवतिन संगा