दुःखी दुनिया
देह धरा कोई सुखी न देखा, जो देखा सो दुखिया रे
घाट घाट पे सब जग दुखिया, क्या गेही वैरागी रे
साँच कहूँ तो कोई न माने, झूट कह्यो नहिं जाई रे
आसा तृष्णा सब घट व्यापे, कोई न इनसे सूना रे
कहत ‘कबीर’ सभी जग दुखिया, साधु सुखी मन जीता रे
दुःखी दुनिया
देह धरा कोई सुखी न देखा, जो देखा सो दुखिया रे
घाट घाट पे सब जग दुखिया, क्या गेही वैरागी रे
साँच कहूँ तो कोई न माने, झूट कह्यो नहिं जाई रे
आसा तृष्णा सब घट व्यापे, कोई न इनसे सूना रे
कहत ‘कबीर’ सभी जग दुखिया, साधु सुखी मन जीता रे