विरह व्यथा
दरस म्हाने बेगा दीज्यो जी, खबर म्हारी बेगी लीज्यो जी
आप बिना मोहे कल न पड़त है, म्हारा में गुण एक नहीं है जी
तड़पत हूँ दिन रात प्रभुजी, सगला दोष भुला दिज्यो जी
भगत-बछल थारों बिरद कहावे, श्याम मोपे किरपा करज्यो जी
मीराँ के प्रभु गिरिधर नागर, आज म्हारी लाज राखिज्यो जी