वियोग
ब्रज के बिरही लोग दुखारे
बिन गोपाल ठगे से ठाढ़े, अति दुरबल तनु कारे
नन्द जसोदा मारग जोवत, नित उठि साँझ सकारे
चहुँ दिसि ‘कान्ह कान्ह’ करि टेरत, अँसुवन बहत पनारे
गोपी गाय ग्वाल गोसुत सब, अति ही दीन बिचारे
‘सूरदास’ प्रभु बिन यों सोभित, चन्द्र बिना ज्यों तारे