वन-विहार
भोजन करे श्याम कानन में
ग्वाल-बाल संग हँसे हँसाये, मुदित सभी है मन में
छीके खोल सखा सब बैठे, यमुना तट पर सोहे
उनके मध्य श्याम-सुन्दर छबि, सबके मन को मोहे
जूठे का संकोच नहीं, सब छीन झपट के खायें
सभी निहारें मोहन मुखड़ा, स्वाद से भोजन पायें
छटा निराली नटनागर की, धरी वेणु कटि-पट में
घृत मिश्रित दधि-भात ग्रास को, पकड़े अपने कर में
यज्ञ-भोगता ग्वालों के सँग, वन में भोग लगाये
अद्भुत लीला निरख स्वर्ग के, देव अधिक हर्षाये