गोपियों की ललक
भेजे मन-भावन के उद्धव के आवन की,
सुधि ब्रज-गाँवनि में पावन जबैं लगी
कहैं, ‘रतनाकर’ गुवालिनि की झौरि-झौरि,
दौरि-दौरि नंद-पौरि आवन तबै लगीं
उझकि-उझकि पद-कंजनि के पंजनि पै,
पेखि-पेखि पाती छाती छोहनि छबै लगीं
हमकौं लिख्यौ है कहा, हमकौं लिख्यौ है कहा,
हमकौं लिख्यौ है कहा, कहन सबै लगीं
Sweet line
Indeed!