भक्त वत्सलता
भक्त के वश में हैं भगवान
जब जब स्मरण किया भक्तों ने, रखली तुमने आन
चीर खिंचा जब द्रुपद-सुता का, दु:शासन के द्वारा
लिया वस्त्र अवतार, द्रौपदी ने जब तुम्हें पुकारा
लगी बाँधने यशुमति मैया, जब डोरी से तुमको
थकी यशोदा पर न बँधे, तो बँधवाया अपने को
दुर्वासा संग शिष्य जीमने, पाण्डव-कुटि पर आये
कुन्ती थी हैरान भात में, भोजन रूप समाये
दीन सुदामा गये द्वारका, जभी तुम्हीं से मिलने
देख दुर्दशा दुखी हुए, ऐश्वर्य दिया तब तुमने