नाम स्मरण
भजो रे मन श्री राधा गोविंद
जन-मन को निज-धन-मनमोहन, पूरन परमानंद
जीवन के जीवन वे तेरे, तू चकोर वे चन्द
कैसे तिनहिं बिसारि भयो तूँ, मोह मुग्ध मतिमन्द
चेत-चेत रे अब तो मूरख, छोड़ सबहिं छल-छन्द
सब तज भज मोहन को प्यारे, यहीं पंथ निर्द्वंद
नाम स्मरण
भजो रे मन श्री राधा गोविंद
जन-मन को निज-धन-मनमोहन, पूरन परमानंद
जीवन के जीवन वे तेरे, तू चकोर वे चन्द
कैसे तिनहिं बिसारि भयो तूँ, मोह मुग्ध मतिमन्द
चेत-चेत रे अब तो मूरख, छोड़ सबहिं छल-छन्द
सब तज भज मोहन को प्यारे, यहीं पंथ निर्द्वंद