लंका दहन (राजस्थानी)
बानर जबरो रे, लंका नगरी में मच गयो हाँको रे
मात सीताजी आज्ञा दीनी, फल खा तूँ पाको रे
कूद पड्यो इतने में तो हनुमत मार फदाको रे
रूख उठाय पटक धरती पर, भोग लगाय फलाँ को रे
राक्षसियाँ अरडावे सारी, काल आ गयो म्हाको रे
उजड़ गई अशोक वाटिका, बिगड़ग्यो सारो खाको रे
हाथ टाँग तोड्या राक्षस का, सिर फोड्या ज्यूँ मटको रे
लुक छिप राक्षस घर में घुसग्या, पड़ गयो फाको रे
जाय पुकार करी रावण सूँ, कुसल नहीं लंका की रे