बल मोहन
बल मोहन दोऊ करत बियारू, जसुमति निरख जाय बलिहारी
प्रेम सहित दोऊ सुतन जिमावत, रोहिणी अरु जसुमति महतारी
दोउ भैया साथ ही मिल बैठे, पास धरी कंचन की थारी
आलस कर कर कोर उठावत, नयनन नींद झपक रही भारी
दोउ जननी आलस मुख निरखत, तन मन धन कीन्हों बलिहारी
बार बार जमुहात ‘सूर’ प्रभु, यह छबि को कहि सके बिचारी