आद्य शंकराचार्य
अनुप्राणित वैदिक धर्म किया, श्रद्धा से उनका स्मरण करें
वे ज्ञान मूर्ति शंकर ही थे, हम सादर उन्हें प्रणाम करें
जब धर्म अवैदिक फैल गया तो ब्रह्मवाद हो गया मन्द
अवतरित हुए शंकराचार्य तो श्रुति विरोध का हुआ अंत
आचार्य-चरण से सुलभ हमें स्तुतियाँ श्रेष्ठ प्रभु-विग्रह की
श्रद्धापूर्वक हम गान करें, हो सुदृढ़ भावना भक्ति की
आत्मा ही तो परमात्मा, उपनिषद् का सिद्धांत यही
आदर्श समन्वय का प्रकार, दृढ़ता से निरूपित किया वही