भक्ति-भाव
आनन्द अधिक है भक्ति में
आकर्षण ऐसा न त्याग में, योग, ज्ञान या यज्ञों में
गोदी में बैठ यशोदा के, जो माँ का मोद बढ़ाते
वे बिना बुलाये प्रायः ही, पाण्डव के घर प्रभु आते
रुक्मिणी के हित व्याकुल इतने, सो नहीं रात्रि में पाते
वे लगते गले सुदामा के तो अश्रु प्रवाहित होते
गोपीजन के संग रास रचे, वे माता से बँध जाते
हम करें भक्ति ऐसे प्रभु की, भवनिधि से पार लगाते