अध्यात्म चिंतन
आध्यात्मिक जीवन को जीये, सुख शांति सुलभ होगी अपार
धन दौलत अथवा विषय भोग की, लिप्सा में कोई न सार
तृष्णा का अन्त नहीं आता, बेचैन सदा ही मन रहता
संपत्ति सुखों के चक्कर में, आशाओं से मन नहिं भरता
जहाँ ममता, चाह, अहं न रहे, निस्पृह होकर विचरण करते
तब शांति सुलभ हो जाती है, चिंताओं से न घिरे रहते
साधु संतों की सेवा हो, अपने कुटुम्ब का पालन हो
उतना ही वित्त अपेक्षित है, बाकी परहित उपयोगी हो