प्रभाती
अब जागो मोहन प्यारे
मात जसोदा दूध भात लिये, बैठी प्रात पुकारे
उठो मेरे मोहन आ मेरे श्याम, माखन मिसरी खारे
वन विचरन को गौएँ ठाड़ीं, ग्वाल बाल मिल सारे
तुम रे बिन एक पग नहिं चाले, राह कटत सब हारे
ना तुम सोये ना मैं जगाऊँ, लोग भरम भये प्यारे
दासी ‘मीराँ’ झुक झुक देखत, श्याम सूरति मतवारे