रथ-यात्रा
आज सखी, रथ बैठे नंदलाल
अति विचित्र पहिरे पट झीनो,उर सोहत वन-माल
वामभाग वृषभानु-नंदिनी, पहिर कसूंभी सारी
तैसोई घन उमड्यो चहुँ दिशि, गरजत है अति भारी
सुन्दर रथ मणि-जटित मनोहर, अनुपम है सब साज
चपल तुरंग चलत धरणी पे, रह्यो घोष सब गाज
ताल पखावज बीन बाँसुरी, बाजत परम रसाल
‘गोविंददास’ प्रभु पे बरखत, विविध कुसुम ब्रजबाल