श्रीकृष्ण प्राकट्य
आज व्रज में छायो आनन्द
नंद महर घर ढोटा आयो, पूरण परमानंद
विविध भाँति बाजे बाजत हैं, वेद पढ़त द्विज-वृंद
छिरकत दूध दही घृत माखन, मोहन-मुख अरविन्द
देत दान ब्रजराज मगन मन, फूलत नाहिं समाय
देते असीस सबहिं जन ब्रज के, बार-बार बलि जाय