Jagiya Raghunath Kunwar Panchi Van Bole
प्रभाती जागिये रघुनाथ कुँवर, पँछी वन बोले चन्द्र किरन शीतल भई, चकई पिय मिलन गई त्रिविध मंद चलत पवन, पल्लव द्रुम डोले प्रात भानु प्रगट भयो, रजनी को तिमिर गयो भृंग करत गुंजगान कमलन दल खोले ब्रह्मादिक धरत ध्यान, सुर नर मुनि करत गान जागन की बेर भई, नयन पलक खोले
Van Te Aawat Shri Giridhari
वन से वापसी वनतैं आवत श्रीगिरिधारी सबहिं श्रवन दै सुनहु सहेली, बजी बाँसुरी प्यारी धेनु खुरनि की धुरि उड़त नभ, कोलाहल अति भारी गावत गीत ग्वाल सब मिलिकें, नाचत बीच बिहारी मलिन मुखी हम निशि सम नारी, बिनु हरि सदा दुखारी कृष्णचन्द्र ब्रजचन्द्र खिलें नभ, तब हम चन्द्र उजारी मिटै ताप संताप तबहिं जब, दृष्टि […]
Kahe Re Van Dhoondhan Jaai
अन्तर्यामी काहे रे वन ढूँढन जाई घट घट वासी सदा अलेपा, तोही संग समाई पुष्प मध्य ज्यों गंध बसत है, मुकुर माँहि जस छार्इं तैसे ही हरि बसे निरन्तर, घट घट खोजौ भाई बाहर भीतर एकौ जानौ, ‘नानक’ ज्ञान बताई
Van Main Raas Chata Chitarai
रास लीला वन में रास छटा छितराई चम्पा बकुल मालती मुकुलित, मनमोहक वनराई कानन में सजधज के गोपियन,रूप धर्यो सुखदाई शरद पूर्णिमा यमुना-तट पे, ऋतु बसंत है छाई आकर्षक उर माल सुवेषित अभिनव कृष्ण पधारे दो-दो गोपी मध्य श्याम ने, रूप अनेकों धारे राजत मण्डल मध्य कन्हैया, संग राधिका प्यारी वेणु बजी ताल और लय […]
Van Main Ruchir Vihar Kiyo
वन विहार वन में रुचिर विहार कियो शारदीय पूनम वृन्दावन, अद्भुत रूप लियो धरी अधर पे मुरली मोहन स्वर लहरी गुंजाई ब्रज बालाएँ झटपट दौड़ी, सुधबुध भी बिसराई छलिया कृष्ण कहे सखियों को, अनुचित निशि में आना लोक लाज मर्यादा हेतु, योग्य पुनः घर जाना अनुनय विनय करें यों बोली, ‘तुम सर्वस्व हमारे’ ‘पति-पुत्र घर […]