Purte Nikasi Raghuvir Vadhu
वन में सीता राम पुरतें निकसी रघुवीर वधू धरि धीर दए मग में डग द्वै झलकीं भरि भाल कनीं जल कीं, पुट सूखि गए मधुराधर वै फिरि बूझति है, चलनो अब केतिक पर्ण कुटी करिहौ कित ह्वै तिय की लखि आतुरता पिय की अखियाँ अति चारु चलीं जल च्वै