Prabhu Ji Tum Bhakton Ke Hitkari
भक्त-वत्सल भगवान प्रभुजी तुम भक्तों के हितकारी हिरणाकश्यप ने भक्त प्रहलाद को कष्ट दिया जब भारी नरसिंह रूप लिये प्रभु प्रकटें, भक्तों के रखवारी जभी ग्राह ने पकड़ा गज को, आया शरण तुम्हारी सुन गुहार के मुक्त किया गज, भारी विपदा टारी दुष्ट दुःशासन खींच रहा था, द्रुपद-सुता की साड़ी दौड़े आये लाज बचाई, हे […]
Prabhu Tum Ho Din Bandhu
प्रार्थना प्रभु! तुम हो दीनबन्धु, हम दास हैं तुम्हारे माता पिता तुम्हीं हो, एकमात्र तुम सहारे ज्योतित सभी हैं तुम से, रवि चाँद हों कि तारे हैं प्राणवान तुमसे, पशु पक्षी जीव सारे हों पाप दोष हमसे, तुम से छिपें न प्यारे सन्तान हम तुम्हारी, होएँ न तुमसे न्यारे पीड़ा जनम मरण की, दूजा नहीं […]
Jaise Tum Gaj Ko Paw Chudayo
भक्त के भगवान जैसे तुम गज को पाँव छुड़ायौ जब जब भीर परी भक्तन पै, तब तब आइ बचायौ भक्ति हेतु प्रहलाद उबार्यो, द्रौपदी को चीर बढ़ायौ ‘सूरदास’ द्विज दीन सुदामा, तिहिं दारिद्र नसायौ
Tum Taji Aur Kon Pe Jau
परम आश्रय तुम तजि और कौन पै जाऊँ काके द्वार जाइ सिर नाऊँ, पर हथ कहाँ बिकाऊँ ऐसे को दाता है समरथ, जाके दिये अघाऊँ अंतकाल तुम्हरै सुमिरन गति, अनत कहूँ नहिं पाऊँ भव-समुद्र अति देखि भयानक, मन में अधिक डराऊँ कीजै कृपा सुमिरि अपनो प्रन, ‘सूरदास’ बलि जाऊँ
Tum Pe Kon Dehave Gaiya
गौ-दोहन तुम पै कौन दुहावै गैया लिये रहत कर कनक दोहनी, बैठत हो अध पैया इत चितवत उत धार चलावत, एहि सखियो है मैया ‘सूरदास’ प्रभु झगरो सीख्यौ, गोपिन चित्त चुरैया
Tum Meri Rakho Laj Hari
शरणागति तुम मेरी राखौ लाज हरी तुम जानत सब अंतरजामी, करनी कछु न करी औगुन मोसे बिसरत नाहीं, पल-छिन घरी-घरी सब प्रपंच की पोट बाँधिकैं, अपने सीस धरी दारा-सुत-धन मोह लियो है, सुधि-बुधि सब बिसरी ‘सूर’ पतित को बेग उधारो, अब मेरी नाव भरी
Jo Tum Todo Piya Main Nahi Todu Re
अटूट प्रीति जो तुम तोड़ो पिया, मैं नाहीं तोड़ूँ तोरी प्रीत तोड़ के मोहन, कौन संग जोड़ूँ तुम भये तरुवर मैं भई पँखियाँ, तुम भये सरवर मैं भई मछियाँ तुम भये गिरिवर मैं भई चारा, तुम भये चन्दा, मैं भई चकोरा तुम भये मोती प्रभु, मैं भई धागा, तुम भये सोना, मैं भई सुहागा ‘मीराँ’ […]
Tum Bin Meri Kon Khabar Le Govardhan Giridhari
लाज तुम बिन मोरी कौन खबर ले, गोवर्धन गिरधारी मोर-मुकुट पीतांबर सोहै, कुण्डल की छबि न्यारी द्रुपद सुता की लाज बचाई, राखो लाज हमारी ‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, चरण-कमल बलिहारी
Hari Tum Haro Jan Ki Pir
पीड़ा हरलो हरि तुम हरो जन की भीर द्रौपदी की लाज राखी, तुम बढ़ायो चीर भक्त कारन रूप नरहरि, धर्यो आप सरीर हरिणकस्यप मारि लीन्हौं, धर्यो नाहिं न धीर बूड़तो गजराज राख्यौ, कियो बाहर नीर दासी ‘मीराँ’ लाल गिरिधर, हरो म्हारी पीर
Ab Tum Kab Simaroge Ram
हरिनाम स्मरण अब तुम कब सुमरो गे राम, जिवड़ा दो दिन का मेहमान गरभापन में हाथ जुड़ाया, निकल हुआ बेइमान बालापन तो खेल गुमाया, तरूनापन में काम बूढ़ेपन में काँपन लागा, निकल गया अरमान झूठी काया झूठी माया, आखिर मौत निदान कहत ‘कबीर’ सुनो भाई साधो, क्यों करता अभिमान