Nath Tav Charan Sharan Main Aayo
शरणागति नाथ तव चरण शरन में आयो अब तक भटक्यो भव सागर में, माया मोह भुलायो कर्म फलनि की भोगत भोगत, कईं योनिनि भटकायो पेट भयो कूकर सूकर सम, प्रभु-पद मन न लगायो भई न शान्ति, न हिय सुख पायो, जीवन व्यर्थ गँवायो ‘प्रभु’ परमेश्वर पतति उधारन, शरनागत अपनायो