Jau Kahan Taji Charan Tumhare
रामाश्रय जाऊँ कहाँ तजि चरन तुम्हारे काको नाम पतित पावन जग, केहि अति दीन पियारे कौनहुँ देव बड़ाइ विरद हित, हठि हठि अधम उधारे खग मृग व्याध, पषान, विटप जड़यवन कवन सुर तारे देव दनुज, मुनि, नाग, मनुज सब माया-विवश बिचारे तिनके हाथ दास ‘तुलसी’ प्रभु, कहा अपुनपौ हारे
Tum Taji Aur Kon Pe Jau
परम आश्रय तुम तजि और कौन पै जाऊँ काके द्वार जाइ सिर नाऊँ, पर हथ कहाँ बिकाऊँ ऐसे को दाता है समरथ, जाके दिये अघाऊँ अंतकाल तुम्हरै सुमिरन गति, अनत कहूँ नहिं पाऊँ भव-समुद्र अति देखि भयानक, मन में अधिक डराऊँ कीजै कृपा सुमिरि अपनो प्रन, ‘सूरदास’ बलि जाऊँ